पारसी समुदाय में ऐसे होता है अंतिम संस्कार

This is how the last rites are performed in the Parsi community

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अंतिम संस्कार का तरीका बिल्कुल अलग

हजारों साल पहले पर्शिया (ईरान) से भारत आए पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार का तरीका काफी अलग है. पारसी समुदाय में न शव को हिंदू धर्म की तरह जलाया जाता है और ना ही इस्लाम और ईसाई धर्म की तरह दफनाया जाता है.

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पारसी समुदाय में जब किसी की मौत हो जाती है तो शव को श्मशान या कब्रिस्तान नहीं ले जाया जाता है, बल्कि उनके शवों को आसमान के सुपुर्द करते हुए 'टावर ऑफ साइलेंस' के ऊपर रख दिया जाता है.

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जिसके बाद गिद्ध उन शव को आकर खा जाते हैं. गिद्धों का शवों को खाना भी पारसी समुदाय के रिवाज का ही एक हिस्सा है.

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पारसी धर्म में किसी शव को जलाना या दफनाना प्रकृति को गंदा करने जैसा माना जाता है.

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अशुद्ध मानते हैं मर चुके शरीर को

पारसी समुदाय में माना जाता है कि मृत शरीर अशुद्ध होता है. पारसी पर्यावरण को लेकर भी सजग हैं इसलिए वे शरीर को जला नहीं सकते हैं क्योंकि इससे अग्नि तत्व अपवित्र हो जाता है. 

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धार्मिक नजरिए से यह अमान्य

पारसी धर्म में पृथ्वी, जल, अग्नि तत्व को बहुत ही पवित्र माना गया है. परंपरावादी पारसियों का कहना है कि शवों को जलाकर अंतिम संस्कार करना धार्मिक नजरिए से यह पूरी तरह अमान्य और गलत है.

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क्या होता है 'टावर ऑफ साइलेंस'

पारसी समुदाय किसी की मौत के बाद उसके शव को 'टावर ऑफ साइलेंस' ले जाते हैं. 'टावर ऑफ साइलेंस' को आम भाषा में दखमा भी कहा जाता है. 

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कम गिद्ध बढ़ा रहे पारसियों के अंतिम संस्कार में परेशानी

गिद्धों की कमी की वजह से पारसी समाज इंसान के बनाए साधनों पर टिकने को मजबूर है. भारत के कई हिस्सों में शव को जल्दी गलाने के लिए पारसी लोग अब सोलर कंसंट्रेटर का सहारा भी ले रहे हैं.

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हिंदू रिवाज की तरह शवों को जलाने लगे कुछ पारसी लोग

पारसी लोग शवों को अब टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर नहीं रखते हैं बल्कि हिंदू श्मशान घाट या विद्युत शवदाह गृह में ले जाते हैं. 

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