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हमारा दिमाग कैसे फैसला लेता है, किस वक्त गुस्सा करना है और किस वक्त नहीं ?

आपने महसूस किया होगा कि किसी की कोई बात आपको बेहद खराब लग गई होगी और आपको उस पर बहुत गुस्‍सा आया होगा. इस दौरान आपको लगा होगा, जैसे आपका ब्‍लड प्रेशर बढ़ गया है और आप चिल्‍लाने लगे होंगे.
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हमारा दिमाग कैसे फैसला लेता है, किस वक्त गुस्सा करना है और किस वक्त नहीं ?

Newz Funda, New Delhi: आपने महसूस किया होगा कि किसी की कोई बात आपको बेहद खराब लग गई होगी और आपको उस पर बहुत गुस्‍सा आया होगा. इस दौरान आपको लगा होगा, जैसे आपका ब्‍लड प्रेशर बढ़ गया है और आप चिल्‍लाने लगे होंगे. कई बार जब आप गुस्‍सा दिलाने वाले व्‍यक्ति को कुछ कह नहीं पाते तो आपका चेहरा लाल हो जाता होगा या आपको सिर घूमता हुआ महसूस हुआ होगा. कई बार आपको इतना हल्‍का गुस्‍सा आया होगा कि आपने मुस्‍कराकर घटना को नजरअंदाज कर दिया होगा. कई बार आप सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ देते हैं. 

गुस्‍से की तीव्रता में हमारे दिमाग की बहुत बड़ी भूमिका रहती है. हमारा दिमाग ही तय करता है कि कब किस बात पर कितनी तीखी या हल्‍की प्रतिक्रिया जतानी है. दरअसल, गुस्‍सा एक ऐसी भावना है, जो हमारे साथ गुछ गलत होने या हमारे मनमुताबिक कुछ नहीं होने पर शारीरिक प्रतिक्रिया के तौर पर प्रकट होता है. कई बार ये सिर्फ चिल्‍लाने तक सीमित रहता है तो कई बार झगड़ा तक हो जाता है. कई बार हमारा दिमाग हमें पहले ही सचेत कर देता है कि किस व्‍यक्ति से उलझना हमारे लिए नुकसानदायक हो सकता है.

गुस्‍सा हमारे दिमाग के एमिकडाला हिस्‍से में प्रोसेस होता है. एमिकडाला दिमाग के मध्य में मौजूद लिम्बिक सिस्टम का हिस्सा है. एमिकडाला हमारी किसी भी भावना को प्रोसेस करता है. जब एमिकडाला हाइपोथैलेमस से निकलने वाले स्ट्रेट हार्मोन से संपर्क करता है, तो हमें गुस्से आता है. जब हमें बहुत ज्यादा गुस्सा आता है तो इसका हमारी पाचन प्रक्रिया पर भी बुरा असर पड़ता है. हमें गुस्‍से में ब्‍लड प्रेशर बढ़ा हुआ महसूस इसलिए होता है क्‍योंकि हाइपोथैलेमस स्ट्रेस हार्मोन निकलते हैं तो हमारे दिल की धड़कन तेज हो जाती है.

हमारे गुस्‍से को एमिकडाला और हाइपोथैलेमस मिलकर बढ़ाते हैं. गुस्‍से को काबू में करने का काम प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स करता है. यही हमें बताता है कि कहां पर कितना गुस्सा करना है. कई अध्‍ययनों के मुताबिक, अगर प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स पर गंभीर चोट आ जाए तो इंसान मानसिक संतुलन खो देता है. एक शोधपत्र में बताया गया है कि हर छोटी-बड़ी बात पर गुस्सा करने वालों में प्री-फ्रंटल कॉर्टेस और एमिकडाला के बीच कनेक्शन काफी कमजोर होता है. ऐसे लोग आसानी से आपा खो बैठते हैं.

आप अगर ज्यादा गुस्सा करना चाहते हैं तो लगातार उस बात या घटना के बारे में सोचते रहिए, जो गुस्सा दिला रही हो. कुछ लोग लगातार एक ही दिशा में सोचते रहने के कारण हर समय गुस्‍से में रहते हैं. विज्ञान के मुताबिक इसको एंगर रिमिनेशन कहा जाता है. डॉक्‍टर्स का कहना है कि हर छोटी बात पर गुस्सा करने वालों को दिल की बीमारी और अवसाद की दिक्‍कत भी हो सकती है. यही नहीं, ज्‍यादा गुस्सा हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी बुरा असर डालते हैं.

अब सवाल उठता है कि क्‍या गुस्‍सा करने के कुछ फायदे भी हैं या सिर्फ नुकसान ही हैं. इस पर डॉक्‍टर्स का कहना है कि गुस्सा करने के कुछ लाभ भी हैं. कई बार हमारा तेज गुस्‍सा हमें सही दिशा दिखा सकता है. कई शोध में बताया गया है कि दुख या उदासी हमें समस्या से दूर भगाती हैं. वहीं, जब हम गुस्से में होते हैं तो हमारा दिमाग समाधान खोजने की दिशा में काम कर रहा होता है. वहीं, अगर हम अपने गुस्‍से को लगातार दबाकर रखते हैं तो कई बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है. ऐसे में गुस्‍सा होना फायदेमंद होता है.