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प्रोफेसर का inovation: बिजली बनाने के लिए खोजा ऐसा solar system, जिसे धूप और पैनल की नहीं पड़गी अवश्यकता

गोरखपुर में सौर ऊर्जा के लिए ऐसा प्लांट तैयार किया जा रहा है, जिसमें न सूरज के प्रकाश की जरूरत होगी। न ही सोलर पैनल की जरूरत होगी। इसके बाद भी बिजली का उत्पादन...

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Newz Funda, Uttar Pardesh  उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में सोलर एनर्जी के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव होने वाला है। मदन मोहन मालवीय टेक्निकल यूनिवर्सिटीए गोरखपुर ने नए अविष्कार के माध्यम से ऊर्जा के क्षेत्र को एक अलग स्तर पर ले जाने की कोशिश की है।

इस नए अविष्कार के माध्यम से दावा यह किया जा रहा है कि सौर ऊर्जा से बिजली बनाने के लिए अब सूर्या को बादलों से बाहर आने की जरूरत नहीं होगी। साथ ही इसके लिए न ही सोलर पैनल की आवश्यकता होगी।

दिन की गर्मी को ही ऊर्जा में बदलकर प्रयोग किया जा सकता है। इस नए प्रयोग को वास्तव में लाने के लिए तैयारी कर ली गई है। अगर ऐसा संभव हुआ तो फिर फिर यह बड़े ऊर्जा प्लांटों से कम खर्चीला साबित होगा। 

मदन मोहन मालवीय टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटीए गोरखपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर प्रशांत सैनी ने इस नए सोलर प्लांट का कॉन्सेप्ट तैयार किया है। आधुनिक सोलर प्लांट में आसमान के बादलों के पीछे छिपे सूरह से भी ऊर्जा प्राप्त कर लेने की क्षमता होगी।

इस प्लांट की खास बात यह होगी कि 10 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी को भी सौर ऊर्जा में बदल देगा। इस सोलर प्लांट का प्रयोग ऐसे स्थानों पर किया जा सकेगाए जहां कई दिनों तक धूप नहीं निकलती है।

संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग अध्यक्ष प्रोण् जीऊत सिंह के मार्गदर्शन में इस शोध कार्य को पूरा कराया गया है। डॉण् प्रशांत की ओर से तैयार किए गए सोलर प्लांट के प्रारूप से संबंधित शोध पत्र को यूनाइटेड किंगडम के अंतरराष्ट्रीय जर्नल एनर्जी कन्वर्जन एंड मैनेजमेंट ने भी प्रकाशित किया है।

सोलर प्लेट भी जरूरी नहीं

सोलर एनर्जी के लिए छतों पर या फिर खाली स्थानों में आप सोलर प्लेट लगा जरूर देखे होंगे। लेकिन, डॉ. प्रशांत के शोध में इसकी जरूरत नहीं होती है। कंबाइंड कूलिंग, हीटिंग, पावर एंड डिसैलिनेशन नामक यह सोलर प्लांट सौर ऊर्जा की जगह वातावरण की गर्मी से खुद को चार्ज कर सकता है।

दरअसल, इस नए इनोवेशन के तहत थर्मल आयल से भरी इनक्यूबेटेड ट्यूब से बना सोलर क्लेक्टर सौर ऊर्जा को एकत्र कर सकता है। फेज चेंज मटेरियल टैंक में उसे सुरक्षित करके बिजली से चलने वाले यंत्रों को संचालित किया जा सकता है। इस नई तकनीक के जरिए दूषित पानी को भी पेयजल में परिवर्तित किया जा सकेगा।

डॉ. प्रशांत को इस शोध में आईआईटी बीएचयू के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. जे. सरकार का भी सहयोग मिला है। डॉ. प्रशांत अब साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्रालय की ओर से मिलने वाली आर्थिक सहायता के माध्यम से प्लांट को भौतिक रूप देने में जुटे हुए हैं।

ऐसे तैयार होगी बिजली

डॉक्टर जीऊत सिंह का कहना है कि 600 डिग्री सेल्सियस तक बॉयलिंग पॉइंट वाले थर्मल आयल से इन्क्यूबेटेड ट्यूब से बने सोलर क्लेक्टर सूर्य की ऊर्जा एकत्र होगी। यहां से उसे फेज चेंज मटेरियल टैंक में भेजा जाएगा।

उसमें अपेक्षाकृत कम बॉयलिंग पॉइंट कार्बोनेटेड लिक्विड को यह वाष्पीकृत करना शुरू कर देंगी। कार्बोनेटे मटेरियल में एन ब्यूटेन, एन पेंटेन आदि मुख्य रूप से रहेगा। वाष्पीकरण की पक्रिया से मिली ऊर्जा टरबाइन को चलाएगी। इससे बिजली का निर्माण शुरू हो जाएगा।

बिजली बनाने की प्रक्रिया दिन में होगी। दिन ढलने के बाद भी बिजली बनने की प्रक्रिया लगातार जारी रहेगी।

गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत को बढ़ावा देना उद्देश्य

सौर ऊर्जा के क्षेत्र में नए इनोवेशन को लेकर एमएमयूटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रशांत सैनी का कहना है कि इस सोलर प्लांट का उद्देश्य गैर परंपरागत ऊर्जा को बढ़ावा देना है।

अभी तक हुए शोध कार्य के आधार पर अनुमान है कि इस प्लांट से प्रति यूनिट बिजली बनाने में 8.50 रुपये का खर्च आएगा। इसमें किसी प्रकार की बैटरी का उपयोग नहीं किया जा रहा है। इससे यह प्लांट पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी मील का पत्थर साबित होगा।