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Supreme Court Decision - पिता की मृत्यु के बाद वसीयत न होने पर भी बेटियों को संपत्ति में मिलेगा इतना अधिकार

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर और कृष्ण मुरारी की बेंच ने यह फैसला किया है, कि 1956 से पहले के जमीन-जायदाद से जुड़े उत्तराधिकार के मामलों में भी बेटियों को बेटों के बराबर ही अधिकार दिया जाएगा। 
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सुप्रीम कोर्ट

Newz Funda, New Delhi पिता की संपत्ति में जितना हक बेटों का होता है, उतना ही बेटियों का भी होता है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर और कृष्ण मुरारी की बेंच ने यह फैसला किया है, कि 1956 से पहले के जमीन-जायदाद से जुड़े उत्तराधिकार के मामलों में भी बेटियों को बेटों के बराबर ही अधिकार दिया जाएगा। 

अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु वसीयत लिखने से पहले हो जाती है, तो उसकी स्वअर्जित-संपत्ति उत्तराधिकार के सिद्धांत  (Inheritance) के तहत उसकी संतानों को मिलेगी। असल में पिता की मृत्यु के बाद वसीयत न होने पर बेटियों का कितना अधिकार है, इस पर कोर्ट का नया फैसला आया है।  

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा है, कि चाहे वह बेटा हो, या बेटी। उत्तरजीविता (Survivorship) के नियम के अनुसार जिस संपत्ति की वसीयत न हुई हो वह संपत्ति मरने वाले के भाइयों या अन्य सगे-संबंधियों को हस्तांतरित नहीं होगी।

फिर चाहे वह सारी उम्र से एक ही परिवार में ही क्यों न रह रहे हो। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यह फैसला मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को पलटते हुए सुनाया है, जिसमें 1949  में स्वर्गवासी हुए मरप्पा गोंदर की बिना वसीयत की जायदाद उनकी बेटी कुपाई अम्मल को नहीं देने का आदेश दिया गया था।

भारतीय हिंदू समाज में उत्तराधिकार कानून

जस्टिस कृष्ण मुरारी ने इस फैसले के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा, कि हमारे तो प्राचीन ग्रंथों में भी महिलाओं को जायदाद में बराबर की उत्तराधिकारी माना जाता है। तमाम ग्रंथों में पत्नी, बेटी जैसी महिला उत्तराधिकारियों को मान्यता दी गई है। चलिए भारतीय हिंदू समाज में उत्तराधिकार कानून के बारे में विस्तार में जानते है।

इतिहास 1956

भारतीय हिंदू समाज में उत्तराधिकार के संबंध में धर्मशास्त्र परंपरा का एक हिंदू ग्रन्थ है। सबसे पहले इस ग्रंथ में ही महिलाओं की संपत्ति के अधिकार के संबंध में जिक्र मिलता है। इस ग्रंथ के दो महत्वपूर्ण कानून विज्ञानेश्वर रचित मिताक्षरा और जीमूतवाहन रचित दायभाग थे।

दायभाग कानून सिर्फ बंगाल और असम में चलता था। जबकि मिताक्षरा का कानून देश के बाकी हिस्सों में चलता था। मिताक्षरा के अंतर्गत चार तरह की संप्रदाय आती है। मिथिला, बनारस, महाराष्ट्र-बॉम्बे और द्रविड़ संप्रदा। दोनों ही कानूनों में पुत्रों को ही संपत्ति देने का जिक्र किया गया है। हालांकि इसके अंतर्गत संपत्ति के 3 प्रकार का जिक्र आता है।

1- व्यक्ति ने जो संपत्ति स्वयं अर्जित

जो संपत्ति व्यक्ति ने स्वयं ही अर्जित की है, उसे वह अपनी इच्छा अनुसार किसी को भी दे सकता है।

2- पैतृक संपत्ति

पैतृक संपत्ति उसके पुत्रों और पुत्रियों को ही मिलती थी। मिताक्षरा में पिता की संपत्ति का पुत्रों का जन्म से अधिकार होता था, लेकिन दायभाग कानून में ऐसा कुछ नही था।

3- अन्य - माता, पिता व रिश्तेदारों द्वारा दी गई संपत्ति

पिता की मृत्यु के बाद उसका पुत्र ही अधिकारी बनता था। ऐसे में पुत्र पिता के जीवित रहते ही संपत्ति का बंटवारा कर सकता था। माता-पिता अपनी मर्जी से संपत्ति किसी को भी दे सकते थे।

कानूनों का किया गया संशोधन

1956 तक देश में यह परंपरा चली आ रही है। इस परंपरा में लैंगिक असमानता थी, इस लिए हिंदू उत्तराधिकार के लिए इन दोनों ही कानूनों को संशोधन किया गया। इसमें धार 8-13 को जोड़ दिया गया है। जिसके तहत वसीयत लिखे बिना मरने पर पिता की संपत्ति का बंटवारा निम्न आधार पर किया जाएगा

- ऐसे में जायदाद के वारिस पुत्र, पुत्री, माता, विधवा पत्नी व अन्य होंगे। अगर ये न हो तो पिता, पुत्री, पुत्र संपत्ति ले सकते है। अगर ये भी जिंदा न हों तो गोत्रज को मिलेगा, वहीं अगर ये भी न हों तो मृतक के बंधू, नाना, नानी आदि को मिलेगा और ये भी न हों तो उस व्यक्ति की संपत्ति दान दी जाएगी।

- हालांकि महिलाओं ने इस कानून को लेकर आपत्ति जताई है, उनका कहना है, कि ये सब कागजी बातें है। उसके बाद 2005  कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में 1956 के कानून में सुधार करके नया हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लाया गया, जो कि 1 सितंबर 2005 में लागू किया गया। इसके तहत महिलाओं को संपत्ति में व्यापक अधिकार दिए गए। इस कानून के अनुसार महिलाओं को स्वअर्जित व पैतृक संपत्ति में भी पूरा हक दिया गया। अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के अधिकार को और भी विस्तारित कर दिया।

- हिंदू उत्तराधिकार कानून-1956 (Hindu Succession Act-1956) के लागू होने के बाद शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि बेटियों को पिता, दादा, परदादा की स्वअर्जित संपत्ति में बेटियों के बराबर का अधिकार होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ताजा फैसले में यह निश्चित कर दिया, कि पैतृक संपत्ति में बेटियों और बेटों के बराबर के अधिकार 1956 से पहले के मामलों पर भी लागू किए जाएगे।