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पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' तीसरी बार बने नेपाल के PM, इन विपक्षी दलों ने दिया समर्थन

पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' तीसरी बार नेपाल के पीएम बन गए हैं। उनको कई विपक्षी दलों की ओर से समर्थन दिया गया है।

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Newz Funda, New Delhi नेपाल से बड़ी खबर सामने आई है। यहां पर पुष्प कमल दहल प्रचंड को पीएम नियुक्त किया गया है। वे तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने गए हैं।

उनको पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाले विपक्षी दल सीपीएन-यूएमएल सीपीएन-माओवादी सेंटर, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) और अन्य छोटे दलों की ओर से समर्थन दिया गया है। समर्थन का फैसला एक महत्वपूर्ण बैठक में दिया गया, जहां पर प्रचंड के नेतृत्व में सरकार बनाने पर सभी लोगों में सहमति बन गई।

नई सरकार को 165 सांसदों का समर्थन

Pushpa Kamal Dahal Prachanda तीसरी बार पीएम बने हैं। सामने आया है कि उनकी नई सरकार को 165 सांसदों का समर्थन मिला है। सीपीएन-एमसी देब के महासचिव गुरुंग की ओर से इसकी पुष्टि की गई है।

सभी सांसदों के हस्ताक्षर वाला दस्तावेज राष्ट्रपति को सौंपा जाएगा। जिसको लेकर सभी तैयारियां की जा रही हैं। कहा गया है कि प्रेसिडेंट को सौंपने के लिए ही समझौता पत्र तैयार किया जा रहा है। जल्द इसको अमलीजामा पहना दिया जाएगा।

बैठक के बारे में बात करें तो ओली के आवास बालकोट में यह हुई। बैठक में ओली, प्रचंड, आरएसपी अध्यक्ष रवि लामिछाने, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के प्रमुख राजेंद्र लिंगडेन, जनता समन्वयवादी पार्टी के अध्यक्ष अशोक राय सहित दूसरे दलों के प्रतिनिधियों की ओर से भाग लिया गया।

जिसके बाद रोटेशन के आधार पर सरकार बनाने को लेकर फैसला हुआ। जिसके बाद ओली इस बात पर एग्री हो गए कि पहले प्रचंड को पीएम बनाया जाए। 

यह है दलीय स्थिति

165 सांसदों की दलीय स्थिति की बात करें तो सीपीएन-यूएमएल के 78, सीपीएन-एमसी के 32, आरएसपी के 20, आरपीपी के 14, जेएसपी के 12, जनमत के 6 और नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के 3 लोग शामिल हैं। कुल संख्या 275 होती है।

वहीं, सीपीएन-यूएमएल के महासचिव शंकर पोखरेल की ओर से कहा गया है कि नेपाली कांग्रेस सरकार बनाने में विफल रही है। वहीं, निवर्तमान प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा भी नेपाली कांग्रेस के दलों से बाहर हो गए हैं।

वे अपनी मांगें नहीं माने जाने से नाराज थे। इससे पहले पीएम हाउस में भी प्रचंड के साथ नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे प्रमुख पदों को लेकर अपना दावा ठोका था। जिसे प्रचंड की ओर से रिजेक्ट करने के बाद बातचीत विफल हो गई थी। बाद में यह गठबंधन टूट गया था।