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किसी जमाने में खासमखास रहे लोग छोड़ने लगे Ashok Gehlot का साथ, ये है वजह

कभी जो लोग अशोक गहलोत के करीबी माने जाते थे, वे आज उनका साथ छोड़ने लगे हैं।

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Newz Funda, Jaipur राजस्थान में कांग्रेस की रार किसी से छिपी नहीं है। यहां सचिन पायलट और अशोक गहलोत में 36 का आंकड़ा खूब है।

आपको बता दें कि कभी अपने विधायकों पर पकड़ रखने वाले अशोक गहलोत के बारे में कहा जाने लगा है कि वे नरम पड़ते जा रहे हैं।

एक समय था जब गहलोत का साथ खूब विधायकों ने दिया था। लेकिन अब समय करवट लेने लगा है। कहा जा रहा है कि कई विधायक उनसे दूरी बनाने लगे हैं।  

वक्त के साथ अपनों का रुख किस तरह से बदल जाता है, यह बात राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बेहतर कौन बता सकता है।

इसी साल सितंबर में जब गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस में थे। आलाकमान ने राजस्थान में सीएम बदलने के लिए दिल्ली से दूत भेजे थे।

विधायकों की मीटिंग के साथ उनकी सहमति लेनी थी, लेकिन गहलोत के समर्थक विधायकों ने उनके पक्ष में बगावत कर दी। इसके बाद तमाम ड्रामा हुआ और किसी तरह गहलोत की कुर्सी बची।

अब नवंबर का आखिरी हफ्ता चल रहा है और बढ़ती सर्दी के बीच गहलोत बनाम पायलट मुकाबले की गर्मी फिर उभर रही है। लेकिन इस बार गहलोत कुछ कमजोर पड़ते दिखाई दे रहे हैं। 

गुढ़ा की बात के क्या आ रहा निकलकर
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कैसे कमजोर पड़ रहे हैं, इसका संकेत गहलोत सरकार के मंत्री राजेंद्र गुढ़ा के बयान से मिल रहा है।

गुढ़ा ने अपने बयान में कहा कि राजस्थान में 80 फीसदी विधायकों का समर्थन सचिन पायलट के साथ है।

गुढ़ा ने यह बात अशोक गहलोत के उस बयान के बाद कही है, जिसमें उन्होंने सचिन पायलट को गद्दार कहा था।

बता दें कि राजस्थान कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता हरीश चौधरी ने भी इस मामले में गहलोत को सही शब्दों के इस्तेमाल की सीख दी थी।

उन्होंने कहा था कि चाहे किसी भी पद पर बैठा व्यक्ति क्यों न हो, उसे शब्दों का चयन सही करना चाहिए। इसी तरह, प्रताप खाचरियावास जैसा गहलोत समर्थक भी इस बार मौन है।

गांधी फैमिली से बढ़ी दूरी का असर?
असल में जब सितंबर में गहलोत बनाम पायलट ड्रामा हुआ था, तब अशोक गहलोत गांधी फैमिली के करीबी हुआ करते थे।

लेकिन बताया जाता है कि राजस्थान में गहलोत समर्थकों की बगावत के बाद से अब यह संबंध सामान्य नहीं रह गए हैं।

हालांकि इस एपिसोड के बाद गहलोत ने सोनिया गांधी से माफी मांग ली थी, लेकिन माना जाता है कि राजस्थान की कुर्सी को लेकर जिद पालना गहलोत के लिए महंगा पड़ चुका है।

वहीं, इसके बाद अशोक गहलोत द्वारा अडाणी की तारीफ ने भी इस आग में घी डाला है।

संभवत: यही वजह है कि बदले हुए माहौल में राजस्थान के विधायक उस तरह गहलोत के साथ नहीं हैं, जिस तरह वो तब थे जब सीएम गांधी परिवार के करीब हुआ करते थे।

खड़गे उस पूरे ड्रामे के चश्मदीद रहे 
जिस वक्त राजस्थान में गहलोत बनाम पायलट ड्रामा हुआ था, तब सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं।

वहीं, अब मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बन चुके हैं। खड़गे उस पूरे ड्रामे के चश्मदीद रहे हैं।

तब अजय माकन के साथ खड़गे ही दिल्ली से पार्टी अध्यक्ष का संदेश लेकर राजस्थान आए थे।

बताया जाता है कि उस पूरे एपिसोड से आज भी खड़गे और माकन का मन खट्टा है।

दूसरी तरफ पार्टी अध्यक्ष के रूप में खड़गे के ताकतवर होने के बाद राजस्थान के नेताओं की निष्ठा भी उनके प्रति बढ़ी है।

साथ ही यह भी तय है कि खड़गे गांधी परिवार के विश्वसनीय हैं, ऐसे में पार्टी के नेता भी ‘बिग बॉस’ के हिसाब से चलने की मंशा रखते दिखाई दे रहे हैं।