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Delhi Smog: हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में 30 फीसदी कमी, ऐसे सुधर रहे हैं हालात

हरियाणा से दिल्ली के लिए राहत की खबर आई है। यहां पर पराली जलाने के मामलों में 30 फीसदी कमी आई है।

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Newz Funda, New Delhi Delhi में फैल रहे Pollution के बीच एक राहत की खबर आई है। आपको पता होगा कि दिल्ली में जब भी प्रदूषण ज्यादा होता है, इसका दोष पंजाब-हरियाणा पर लगता है।

यह बात काफी हद तक ठीक भी कही जाती है। लेकिन अब राहत की खबर लोगों के बीच आ रही है। दिल्ली और एनसीआर में हमेशा इस सीजन में पराली की मार दिखती है।

नवंबर का महीना दिल्ली के लिए काफी कठिनाइयां लेकर आता है। इसके शुरू होने के साथ ही स्मॉग (धुआं युक्त कोहरा) दिल्ली में दिखने लगता है।

फिलहाल भी हालात गैस चैंबर जैसे हो चुके हैं। इस प्रदूषण को लेकर लगातार राजनीति चल रही है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है।

लेकिन इसी बीच राहत की यह खबर आई है कि हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में भारी गिरावट आई है। सरकारी आंकड़े इसकी कहानी बयां कर रहे हैं।

जिसके मुताबिक 3 नवंबर तक सिर्फ 2377 केस हरियाणा में पराली के आए हैं। पिछली साल की कहानी अलग है। जब 3438 केस दर्ज किए गए थे।

जिलास्तर पर जारी किए गए आंकड़े

30 फीसदी की कमी इस बार सरकार की ओर से रिकॉर्ड की गई है। जिलों के आधार पर भी आंकड़ों को जारी किया गया है।

बता दें कि 15 सितंबर से 3 नवंबर तक फतेहाबाद, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर में ही ज्यादा मामले सामने आए थे। अब कुछ जिलों के बारे में बता रहे हैं।

अकेले करनाल में ही 763 मामले पिछली बार सामने आए थे। दो तिहाई यानी 264 की इस बार कमी दर्ज की गई है। कैथल में 563 मामले मिले हैं, पिछले साल 865 थे।

कुरुक्षेत्र में 476 मामले पहले मिले थे। अब 289 ही दर्ज किए गए हैं। बीते अगर 6 सालों की बात करें तो कमी 55 फीसदी तक आई है। 2016 में 15685 केस थे, जो 2021 में घटकर 6987 तक सिमट गए थे। 

कमी की वजह साफ है बेलर। जो ठेकेदारों ने फ्री में किसानों को दी। जिसके बाद फसल के बचे अवशेषों को सिकोड़ कर गांठों या गट्ठर में तब्दील किया गया।

जिनसे कार्डबोर्ड फैक्ट्री, बायोमास प्लांट, बॉयलर और इथेनॉल प्लांट में इनका उपयोग किया गया। बताया गया है कि बेलर की लागत 15 लाख रुपये तक होती है।

बेलर मशीन किसान के लिए है काफी कारगर

इसके अलावा पराली से गट्ठर बनाने के लिए तीन मशीनों की जरूरत होती है, जो ट्रैक्टर से जोड़ी जाती हैं। डीजल और मजदूरी के लिए सरकार अलग से अनुदान देती है।

पराली से जो गट्ठर बने होते हैं, वे ठेकेदारों की ओर से 170 रुपये प्रति क्विटंल तक बेचे जाते हैं। एक बेलर बेहद जल्द 20 एकड़ पराली को समेट सकता है।   

हरियाणा के कृषि और किसान कल्याण विभाग की मानें तो किसानों को जागरूक किया जा रहा है, ताकि वे पराली न जलाएं।

नगद पुरस्कार, सब्सिडी के अलावा दूसरे ढंग से मदद की जा रही है। किसान खेतों में सुपर सीडर या हेप्पी सीडर मशीन भी यूज कर रहे हैं। जो गेहूं कि सीधी बिजाई के लिए भी कारगर है।