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Haryana में 26 जनवरी के दिन इस गांव के लोगों ने नहीं किया ध्वजारोहण, देश आजाद होने के बाद भी खुद को मान रहे हैं गुलाम

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस गांव को अंग्रेजों ने बिल्कूल खत्म कर दिया था. यहां के लोगों को बंदी बनाकर हांसी की सड़कों पर लोडर से कुचलकर मारा
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Newz Funda, Haryana Desk सन 1857 ही इस गांव के लोग खुद को गुलाम मान रहे हैं, क्योंकि पिछले कई महीनों से रोहनात गांव में स्वतंत्रता सेनानियों का गांव बनाने के लिए धरने पर बैठे हैं लेकिन कोई उनकी मांग सुन ही नहीं रहा है.

हरियाणा के भिवानी जिले के रोहनात में 26 जनवरी के दिन ध्वजारोहण नहीं किया गया है. क्योंकि पिछले काफी समय से यहां के स्वतंत्रता सेनानी धरने पर जुटे हैं. लोगों ने मांग की है कि उनके गांव को स्वतंत्रता सेनानियों का गांव घोषित कर दिया जाए.

लेकिन सरकार ने उनकी इस मांग पर कोई जवाब नहीं दिया है. जिस से नाराज होकर लोगों ने गांव में ध्वाजरोहण नहीं किया है. गांव के लोगों  यह मांग पिछले कई सालों से कर रहे हैं.

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस गांव को अंग्रेजों ने बिल्कुल खत्म कर दिया था. यहां के लोगों को बंदी बनाकर हांसी की सड़कों पर लोडर से कुचलकर मार डाला था, यहां के लोग इस हादसे को भूले नहीं हैं. हासीं की उस जगह को आज भाई लाल सड़क के नाम से जाना जाता है.

आजादी के बाद आजतक इस गांव में झंडा नहीं फहराया गया है। मुख्यमंत्री ने यहां ग्रामीणों के साथ 23 मार्च 2018 को ध्वजारोहण किया था. जिसके दौरान यहां के लोगों ने सीएम को बताया कि कैसे उनके साथ ये हुआ था और इतना होने के बाद भी आज उनके गांव के सेनानियों का गांव घोषित नहीं किया जा रहा है. साथ ही पंजाब में इन लोगों के लाट प्लेट को इन्हें सौंपा गया है. उस समय लोगों ने अपने परिजनों को खोया है. यहां के लोग उस दर्दनाक मंजर को नहीं भूल पा रहे हैं.

ये दी थी ग्रामीणों ने कुर्बानी

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में यहां के लोगों ने अंग्रेजों से लड़ते हुए यहां से लोगों को जेल तोड़कर आजाद करवाया था. इस गांव के 12 अंग्रेजी अफसरों और 11 हांसी के अफसरों को मार दिया था. इस गांव को अंग्रेजी हुकूमत ने तोपों से तहस-नहस कर दिया था. यहां के लोग अपनी जान बचाने के लिए भागे थे. 

लोगों को अंग्रेजों ने लोडर के नीचे कुचलकर मार दिया था. लोगों को फांस पर लटका दिया था. यहां के कुओं को लोगों की लाशों से भर दिया गया था. जिस सड़क पर लोगों को कुचला गया था उसे आज भी लाल सड़क के नाम से जाना जाता है. गांव की औरतें अपनी इज्जत बचाने के लिए कुएं में कुद गयी थी.

नीलाम जमीन पर नहीं मिला हक

अंग्रेजी हुकूमत ने 1857 को रोहनात को बागी घोषित कर दिया। 13 नवंबर को गांव को नीलाम करने की खबर फैला दी गई थी. बाद में यहां के आसपास के गांव के लोगों ने इस गांव को केवल 8 हजार रुपये में खरीदा था. साथ ही अंग्रेजों ने यह आदेश जारी किया था कि आने वाले समय में इन जमीनों को रोहनात के लोगों को नहीं बेचा जाएगा.

10 अगस्त से जारी है गांव में अनिश्चितकालीन धरना

गांव के के लोग काफी समय से धरने पर बैठे हैं पर सरकार ने लोगों की एक नहीं सुनी है. लोगों का कहना है कि यहां के लोगों द्वारा इतना खून बहाने के बाद भई इसे स्वतंत्रता सेनानी का गांव क्यों नहीं घोषित किया जा रहा है. सरकार ने बाद में मृतकों के लिए सरकारी नौकरी देने की हामी भरी थी, लेकिन बाद में एक को भी नौकरी नहीं दी गई है. इसलिए यहां के लोग आज भी अपने आप को गुलाम मान रहे हैं. इसलिए यहां उस समय के बाद कभी ध्वजारोहण नहीं किया गया है.