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क्या अर्थ है भोलेनाथ कि तीसरी आँख का, अगर यह खुल गई तो किस तरह होगा विनाश ?

सावन का पवित्र महीना शुरू हो गया है. इस बार सावन अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से दो महीने का होगा. सनातन धर्म को मानने वाले सावन को भगवान शिव का महीना मानते हैं. भगवान शिव कई प्रतीकों के साथ तीसरा नेत्र भी धारण करते हैं.
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क्या अर्थ है भोलेनाथ कि तीसरी आँख का, अगर यह खुल गई तो किस तरह होगा विनाश ?

Newz Funda, New delhi: सावन का पवित्र महीना शुरू हो गया है. इस बार सावन अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से दो महीने का होगा. सनातन धर्म को मानने वाले सावन को भगवान शिव का महीना मानते हैं. भगवान शिव कई प्रतीकों के साथ तीसरा नेत्र भी धारण करते हैं. भगवान शिव की तीसरी आंख खुलने को लेकर एक कहानी भी है. भारत में प्रेम और वासना के देवता कामदेव को कहा जाता है. काम का अर्थ वासना है. ईशा फाउंडेशन के संस्‍थापक और लेखक सद्गुरु कहते हैं कि वासना का सामना करना ज्‍यादातर लोगों को पसंद नहीं होता. इसलिए इसके चारों ओर कुछ सौंदर्यशास्त्र रचा जाता है. इसलिए लोग इसे प्रेमपूर्ण बनाते हैं.

कहानी यह है कि कामदेव एक पेड़ के पीछे छिप गया और उसने शिव के हृदय पर तीर चलाया. शिव थोड़ा परेशान हो गए. इसलिए उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोली और कामदेव को जलाकर राख कर दिया. ये वो कहानी है जो आमतौर पर सभी को सुनाई जाती है. सद्गुरु कहते हैं कि आप खुद से पूछें, क्या आपकी वासना आपके भीतर पैदा होती है या किसी पेड़ के पीछे से आती है? यह आपके भीतर ही पैदा होती है. वासना सिर्फ विपरीत लिंग के बारे में नहीं है. हर इच्छा वासना है, चाहे वह कामुकता, शक्ति या पद के लिए हो. वासना का अनिवार्य रूप से मतलब है कि आपके भीतर अपूर्णता की भावना है. किसी चीज की लालसा है, जो आपको महसूस कराती है कि अगर मेरे पास वह नहीं है तो मैं पूर्ण नहीं हूं.

तीसरी आंख है एक योगिक आयाम
शिव और कामदेव की कहानी का एक योगिक आयाम है. शिव योग की दिशा में काम कर रहे थे, जिसका अर्थ है कि वह केवल पूर्ण होने की दिशा में ही नहीं, बल्कि असीमित होने की दिशा में काम कर रहे थे. शिव ने अपनी तीसरी आंख खोली और काम को यानी अपनी वासना को ऊपर आते देखा और उसे भस्म कर दिया. राख धीरे-धीरे उसके शरीर से बाहर निकली, जिससे पता चला कि उसके भीतर सब कुछ हमेशा के लिए शांत हो गया था. तीसरी आंख खोलकर उन्होंने अपने भीतर एक ऐसे आयाम को देखा जो भौतिक से परे है और भौतिक की सभी मजबूरियां दूर हो गईं.

भगवान शिव की तीसरी आंख क्या है
भगवान की शिव की तीसरी आंख का मतलब है कि अगर आपका तीसरा नेत्र खुल जाए तो आप वह देख सकते हैं, जो दो भौतिक आंखों से नहीं देखा जा सकता है. आप अपने हाथ को देख सकते हैं, क्योंकि यह रुकता है और प्रकाश को प्रतिबिंबित करता है. आप हवा को नहीं देख सकते, क्योंकि यह प्रकाश को नहीं रोकती है. अगर हवा में थोड़ा सा भी धुंआ हो तो आप उसे देख पाएंगे, क्योंकि आप केवल वही देख सकते हैं, जो प्रकाश को रोकता है. यह दो भौतिक आंखों की प्रकृति है. संवेदी आंखें उसे समझ सकती हैं, जो भौतिक है. जब आप कोई ऐसी चीज देखना चाहते हैं, जो प्रकृति में भौतिक नहीं है तो देखने का एकमात्र तरीका अंदर की ओर है.

कैसे उत्‍पन्‍न हुई शिव की तीसरी आंख
महाभारत के छठे खंड के अनुशासन पर्व में बताया गया है कि एक बार भगवान शिव हिमालय पर्वत पर सभा कर रहे थे. इसमें सभी देवता, ऋषि-मुनि और थे. तभी सभा में माता पार्वती आईं और उन्होंने अपने दोनों हाथ भगवान शिव की आंखों पर रख दिए. भगवान शिव की आंखें ढकते ही सृष्टि में अंधेरा हो गया. लगा सूर्य देव की अहमियत ही नहीं है. इसके बाद धरती के सभी प्राणियों में खलबली मच गई. संसार की ये हालत देखकर शिव व्याकुल हो उठे. इस पर उन्होंने अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज प्रकट किया, जो भगवान शिव की तीसरी आंख बनकर सामने आई. बाद में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने बताया कि अगर वो ऐसा नहीं करते तो संसार का नाश हो जाता. उनकी आंखें ही जगत की पालनहार हैं.

भौतिकता से परे देखती है तीसरी आंख
जब हम तीसरी आंख का जिक्र करते हैं तो हम प्रतीकात्मक रूप से कुछ ऐसा देखने की बात कर रहे होते हैं, जिसे हमारी दो भौतिक‍ आंखें नहीं देख सकती हैं. हमारी भौतिक आंखें बाहर की ओर होती हैं. वहीं, तीसरी आंख हमारी आंतरिकता को देखने के लिए है. दूसरे शब्‍दों में कहें तो तीसरी आंख आपकी प्रकृति और आपके अस्तित्व को देखने के लिए होती है. यह आपके माथे में कोई दरार नहीं है. यह धारणा का वह आयाम है, जिसके जरिये आप यह देख सकते हैं कि भौतिकता से परे क्या है? भौतिक आंखें आपके कर्म के आधार पर दूषित होती जाती हैं. ये आंखें आपको सब कुछ दिखाएंगी कि आपके कर्म कैसे हैं और पिछली यादें कैसी हैं?

सनातन में जानने का क्‍या है मतलब?
हमें हर चीज को उसके वास्‍तविक स्‍वरूप या हर चीज में मौजूद शिव तत्‍व को देखने के लिए तीसरी आंख को खोलने की जरूरत होती है. सद्गुरु कहते हैं कि भारत में परंपरागत रूप से जानने का मतलब किताबें पढ़ना, किसी की बातें सुनना या जानकारी इकट्ठा करना नहीं है. सनातन धर्म में जानने का अर्थ जीवन में नई दृष्टि या अंतर्दृष्टि खोलना है. कोई भी सोच और दार्शनिकता आपके दिमाग में स्पष्टता नहीं ला सकती है. किसी व्‍यक्ति की बनाई तार्किकता आसानी से विकृत हो सकती है. कठिन हालात इसे पूरी तरह उथल-पुथल में डाल सकती हैं. सच्चा ज्ञान पैदा करने के लिए आपकी तीसरी आंख खुलनी जरूरी है.