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Swami Vivekanand Death Anniversary: जानिए किस बीमारी के कारण हुआ था स्वामी विवेकानंद का निधन

स्वामी विवेकानंद का निधन 04 जुलाई 1902 को जब हुआ तब उनकी उम्र 39 साल और 05 माह के आसपास थी. हालांकि वह पहले ही कह चुके थे कि वह 40 साल से ज्यादा नहीं जीएंगे. क्या वह किसी बीमारी से ग्रस्त थे, जो बाद में उनकी मृत्यु की वजह बनी.
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Swami Vivekanand Death Anniversary: जानिए किस बीमारी के कारण हुआ था स्वामी विवेकानंद का निधन 

Newz Funda, New delhi: स्वामी विवेकानंद का निधन 04 जुलाई 1902 को जब हुआ तब उनकी उम्र 39 साल और 05 माह के आसपास थी. हालांकि वह पहले ही कह चुके थे कि वह 40 साल से ज्यादा नहीं जीएंगे. क्या वह किसी बीमारी से ग्रस्त थे, जो बाद में उनकी मृत्यु की वजह बनी. हालांकि उनके शिष्यों के अनुसार उन्होंने महासमाधि ली.

स्वामी विवेकानंद ने 04 जुलाई 1902 को बेलूर मठ के एक शांत कमरे में महासमाधि ली. उस समय उनकी उम्र 39 साल 05 माह और 24 दिन थी. हालांकि विवेकानंद अपने निधन से पहले कई बार अपने शिष्यों और परिचितों को कह चुके थे कि वो 40 साल के आगे नहीं जीने वाले. उनकी उम्र इससे आगे नहीं जाएगी. क्या उनका निधन किसी बीमारी से हुआ था.

कहा जा सकता है कि विवेकानंद ने कम समय में बहुत से काम किए. मृत्यु का भी उन्होंने बहुत शांत तरीके से वरण किया. ऐसा लगता है कि वह पृथ्वी पर एक उद्देश्य लेकर आए थे और जब उन्हें लगा कि ये पूरा हो चुका है तो उन्होंने प्रयाण कर लिया. हालांकि लंबे समय से ये पूछा जाता रहा है कि उनका निधन किस बीमारी से हुआ.

मार्च 1900 में उन्होंने सिस्टर निवेदिता को एक पत्र लिखा, मैं अब काम नहीं करना चाहता बल्कि विश्राम करने की इच्छा है. मैं इसका समय भी जानता हूं. हालांकि कर्म मुझको लगातार अपनी ओर खींचता रहा है. जब उन्होंने ये लिखा कि मैं अपना आखिरी समय और जगह जानता हूं तो वाकई ये जानते थे. इस पत्र को लिखने के 02 साल बाद उनका निधन हो गया.

वर्ष 1902 की शुरुआत से ही उन्होंने सांसारिक मामलों से खुद को अलग करना शुरू कर दिया था. बहुत कम सवालों के जवाब देते थे. वो अक्सर कहते थे, "मैं अब बाहरी दुनिया के मामलों में दखल नहीं देना चाहता." उन्होंने रोमां रोलां से कहा-मैं 40 साल से ज्यादा नहीं जिऊंगा.

विवेकानंद ने 27 अगस्त 1901 को अपनी एक परिचित मेरी हेल को खत लिखा, एक तरह से मैं एक अवकाश प्राप्त व्यक्ति हूं. आंदोलन कैसा चल रहा है, इसकी कोई जानकारी नहीं रखना चाहता. खाने-पीने, सोने और बाकी समय शरीर की शुश्रुषा करने के सिवा मैं और कुछ नहीं करता. विदा मेरी. आशा है इस जीवन में कहीं ना कहीं हम दोनों अवश्य मिलेगे. और अगर नहीं भी मिलें तो भी, तुम्हारे इस भाई का प्यार तो सदा तुम रहेगा ही.

अपनी मृत्यु से दो महीने पहले उन्होंने अपने सभी संन्यासी शिष्यों को देखने की इच्छा जाहिर की. सभी को पत्र लिखकर कम समय के लिए बेलूर मठ आने के लिए कहा. लोग आधी पृथ्वी की यात्रा करके भी उनसे मिलने आने लगे. उन्होंने इस बीच कई बार कहा- मैं मृत्यु के मुंह में जा रहा हूं. देश-दुनिया के समाचारों पर अब वो कोई प्रतिक्रिया नहीं देते थे. हालांकि इन दिनों वो बीमारी की चपेट में भी थे.

मशहूर बांग्ला लेखक शंकर की किताब द मांक एज मैन में बताया गया है कि वह नींद, लिवर, डायबिटीज, किडनी, माइग्रेन और हार्ट जैसी 31 बीमारियों से जूझ रहे थे. उस समय डायबिटीज की कोई कारगर दवा उपलब्ध नहीं थी. हालांकि उन्होंने रोगों से मुक्ति पाने के लिए कई तरह के उपचार किए. हालांकि उनके मृत्यु की वजह दिल का दौरा बनी. 

बेलूर मठ के इसी शांत कमरे में उन्होंने 04 जुलाई 1902 को महासमाधि ली. देहत्याग से एक सप्ताह पहले उन्होंने अपने एक शिष्य को पंचांग लाने का आदेश दिया. ध्यान से उन्होंने पंचांग को देखा. मानो किसी चीज के बारे में ठोस निर्णय नहीं ले पा रहे हों. उनके देहावसान के बाद उनके गुरुभाइयों और शिष्यों को अंदाज हुआ कि वो अपनी देह को त्यागने की तिथि के बारे में विचार कर रहे थे. श्रीरामकृष्ण परमहंस ने भी अपने देहत्याग से पहले ऐसे ही पंचांग को देखा था.

अपनी महासमाधि से तीन दिन पहले उन्होंने प्रेमानंदजी को मठ भूमि में एक विशेष स्थल की ओर इशारा करते हुए कहा, वहीं पर उनके शरीर का दाह हो. अब उस जगह पर ये विवेकानंद मंदिर बना हुआ है.इसकी वेदी ठीक उस जगह पर बनी हुई है, जहां पर स्वामीजी के पार्थिव शरीर को अग्निशिखा पर रखा गया था.