Ink Pen: स्कूली दौर में निब पैन का चलन, अब पीछे छोड़ गई यादें!

एक पुराना दौर था जब नीब पैन का चलन था और इस पैन की देखरेख करना किसी एक्सपर्ट से कम नहीं होता था।

 

Newz Funda, Viral Desk एक पुराना दौर था जब नीब पैन का चलन था और इस पैन की देखरेख करना किसी एक्सपर्ट से कम नहीं होता था। कैमलिन की स्याही उस समय हर घर में मिल ही जाती थी।

तो कुछ लोग टिकिया से स्याही बनाकर भी उपयोग करते थे। ये स्याही बुक स्टाल पर शीशी में स्याही भर कर रखी होती थी और 5 पैसा दो ओर ड्रापर से खुद ही डाल लो ये भी सिस्टम था। जिन्होंने नीब पैन का प्रयोग किया हुआ है और स्याही डाली होगी वो ड्रॉपर के महत्व से  भली भांति परिचित होंगे।

वहीं कुछ लोग ड्रापर का उपयोग कान में तेल डालने में भी करते थे। इस ड्रापर से स्याही डालने के काम में एक्सपर्ट बनने में काफी समय लग जाता था। इसलिए बच्चों को इस काम से दूर रखा जाता था।

हर माह दो-तीन बार निब पैन को खोलकर उसे गरम पानी में रखा जाता था। ताकि नीब पैन की सर्विसिंग की जा सके। स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को लगता था की निब को उल्टा कर के लिखने से हैंडराइटिंग बड़ी सुन्दर बनती है। 

शर्ट के सामने वाली जेब में पेन को टांगा जाता था। कभी कभी स्याही लीक होकर सामने शर्ट नीली कर देती थी। जिसे हम लोग सामान्य भाषा मे स्याही पेन का पोंक देना कहते थे। पोंकना का मतलब होता था लूज मोशन।

स्कूल की हर कक्षा में एक ऐसा एक्सपर्ट होता था जो पैन ठीक से नहीं चलने पर ब्लेड लेकर निब के बीच वाले हिस्से में बारिकी से कचरा निकालने का दावा  कर लेता था। जिसपर हर कोई विश्वास भी कर लेता था। 

इस के साथ स्याही वाले पैन की नीचे के हड्डा को घिस कर परफेक्ट करना भी एक आर्ट था । जब स्याही वाले पैन की हाथ से निब नहीं निकलती थी तो उसे दांतों के उपयोग से भी निब निकालते थे।दांत, जीभ और होंठ भी नीला होकर भगवान महादेव की तरह हलाहल विष पिये सा दिखाई पड़ता था।

दुकान में स्याही वाले पैन की नयी निब खरीदने से पहले उसे पैन में लगाकर सेट करना। जिसके बाद कागज में स्याही की कुछ बूंदे छिड़क कर निब उन गिरी हुयी स्याही की बूंदो पर लगाकर उसकी स्याही सोखने की क्षमता को जांचना।

यह काम भी किसी बड़े साइंटिस्ट वाली फीलिंग दे जाता था, जो अपने आप के एक अलग सा अनुभव को दर्शाता था। जब काम करते करते निब पैन कभी ना चलता था तो हम बिना कुछ सोचे उसे झटकाते थे और आस पास वालों पर स्याही की लंबी धार से निशान पड़ जाते थे।

कक्षा में कुछ बच्चे ऐसे भी होते थे जो पढ़ते लिखते तो कुछ नहीं थे लेकिन घर जाने से पहले उंगलियो में स्याही जरूर लगा लेते थे। बल्कि पैंट पर भी छिड़क लेते थे ताकि घरवालों  को देख के लगे कि बच्चा स्कूल में बहुत मेहनत करता है।

लेकिन आज के समय में इन पैनों की जगह बॉल और Gel पैनों ने ले ली है। स्यिाही का एक पैन तो अंदन देता था वो आज के समय का कोई पैन भी महसूस नहीं करवा सकता।