Gujrat: जान लेने वाले 140 साल पुराने मोरबी पुल की कहानी, करोड़ों खर्च होती है इस पुल की मरम्मत

मोरबी शासकों ने गुजरात में एक पुल का निर्माण 1887 के आसपास करवाया, जो अब एक हादसे का शिकार हो गया है। जिससे कई लोगों ने जान गवाई...

 

Newz Funda, Gujrat Desk गुजरात प्रदेश के मोरबी हादसे का शिकार हुआ ये झूलता ब्रिज कई दशक पुराना है। इस ब्रिज का निर्माण आजादी से पहले 1887 के करीब उस समय मोरबी के तत्कालीन राजा वाघ्ती रावाजी ठाकोर ने करवाया था।

यह ब्रिज मच्छु नदी पर बनाया गया था और वर्तमान समय में यह ब्रिज मोरबी के लोगों के एक प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट था। मोरबी के शासकों की ओर से बनाएं गए इस पुल की खासियत उस समय यह थी जब इस पुल का निर्माण किया गया था तो उस समय में यह यूरोप की सबसे आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया गया था।

अंग्रजों के दौर में भी यह पुल अच्छी तकनीक का प्रतीक बना रहा। बीते कई सालों से सरकार की ओर से समय समय पर इसकी करोड़ों रूपयें लगा मरम्मत की जा रही थी। दिपावली के त्यौहार पर खुला यह पुल मरम्मत के चलते बीते सात महीनें से बंद पड़ा था। 

सात माह बाद खुले इस पुल पर बड़ी संख्या में लोग सैर.सपाटे के लिए पहुंचे थे। उसी दौरान एक हादसा घटित हो गया। 1.25 मीटर चौड़ा यह पुल दरबार गढ़ पैलेस और लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज को जोड़ता है। बता दें कि बीते सात माह के दौरान इस पुल की मरम्मत पर 2 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।

नए साल पर खुला था ब्रिज

आपको बता दें कि जिलले से 64 किलोमीटर की दूरी पर मच्छु नर्दी पर बनाया गया था। इसलिए ये पुल लोगों के आर्कषण का केंद्र था। इस पुल की इंजीनियरिंग कला और पुराने होने के चलते इसे गुजरात टरित्ज की सूची में शामिल किया गया थ।

इस ब्रिज को अब नए साल पर आम जनता के लिए खोला गया था। इससे पहले मरम्मत के लिए यह ब्रिज सात महीने से बंद था। इस पुल की मजबूती के लिए मरम्मत की जा रही थी। जब इस पुल को आम जनता के लिए खोला गया था तो कहा गया था कि विशेषज्ञों की मदद से इस ठीक कर लिया गया है।

पुल टूटने के बाद हुई  प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आई है कि पुल पर उसकी क्षमता से ज्यादा लोग मौजूद थे। इसीलिए यह हादसा घटित हुआ। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस पुल की कुल लंबाई 765 फुट और चौड़ाई साढ़े फुट की है।

इस पुल के नवीनीकरण के लिए सरकारी टेंडर ओधवजी पटेल के स्वामित्व वाले ओरेवा ग्रुप को जारी किया गया था। टेंडर की शर्तो अनुसार इसी ग्रुप को अगले 15 साल तक इस ब्रिज की देखरेख करनी थी। लेकिन आम जनता के लिए खुलने के पांचवें दिन ही यह ऐतिहासिक पुल नदी में गिर गया और कई लोगों की जान चली गई।