पैदा होने से पहले ही चली गई थी पिता की जान, फिर IAS Rajendra Bharud ने ऐसे तय किया झोंपड़ी से बंगले का सफर

 

IAS Dr. Rajendra Bharud का शुरुआती जीवन बेहद मुश्किलों में गुजरा। काफी कठिनाइयां देखीं।

 

Newz Funda, New Delhi IAS Dr. Rajendra Bharud की चर्चा कर रहे हैं, जिनका शुरुआती जीवन काफी मुश्किलों से घिरा रहा। जीवन में काफी परेशानियां देखीं, लेकिन हिम्मत के साथ अपने सपने को पूरा किया।

जो लोग शराब पीने आते थे, कभी-कभी उनको उसी चबूतरे पर पैसे दे देते थे, जिन पर बैठकर वे पढ़ाई करते थे। इस पैसे से ही उन्होंने किताबें खरीदी और सपना पूरा करने में जुटे रहे।

Dr. Rajendra Bharud की Success Story बेहद ही रोमांचक है। जो लोग गरीबी से संघर्ष कर रहे हैं, वे उनके लिए मिसाल से कम नहीं हैं। खुली आंखों से देखा गया अपना सपना कहानी को जानकर पूरा कर सकते हैं।

डॉ. राजेंद्र भारूड कह भी चुके हैं कि गरीबी वह है, जिसे हम जन्म के टाइम से ही जानते हैं। मूल रूप से वे महाराष्ट्र के सकरी तालुका के सामोद गांव के निवासी हैं, जो आज आईएएस बनकर देश की सेवा कर रहे हैं।

इससे पहले एमबीबीएस भी कर चुके हैं। बता दें कि वे घर से कुछ बनने के लिए ही निकले थे। जब घर लौटे तो डॉक्टर के साथ आईएएस बन चुके थे।  

उनका जन्म 7 जनवरी 1988 को अपने गांव में ही हुआ था। जिससे पहले ही पिता इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे। वहीं, बात करें तो परिवार के पास उनकी फोटो तक नहीं थी। परिवार बेहद ही गरीब था। इनकी माता शराब बेचकर अपना गुजारा कर रही थीं। उनका परिवार भी एक छोटी सी झोपड़ी में रहता था। 

घरवाले चुप करवाने के लिए मुंह में डाल देते थे शराब

राजेंद्र भारुड एक बार बता भी चुके हैं कि 3 साल की ऐज में भूख से कैसे बिलबिलाते थे। घरवाले चुप करवाने के लिए मुंह में शराब डाल देते थे। क्योंकि जो लोग शराब पीने आते थे, वे उनके रोने के कारण तंग होते थे।

इसलिए दादी ने बचपन में दूध की जगह शराब देना शुरू कर दिया। वहीं, सर्दी आदि में भी बीमारी से बचने के लिए शराब देते थे। जिसके कारण मुझे लत लग गई थी।  

लेकिन हिम्मत नहीं हारी और 10वीं में 95 और 12वीं में 90 प्रतिशत अंक लिए। इसके बाद 2006 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास की। जिसके बाद मुंबई के केईएम अस्पताल और सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की डिग्री ली, ये किसी सपने को पूरा करने से कम नहीं था। जिसके बाद मुझे प्रदेश का सबसे बेस्ट स्टूडेंट भी घोषित किया गया था।  

इसके बाद सोचा की क्यों न यूपीएससी में हाथ आजमाऊं। जिसके बाद पहले ही अंटेप्ट में इंटर्न होते हुए भी बाजी मार ली। मां को पता लगा तो उनकी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। अब मां को गर्व है कि मैं सिविल अफसर हूं।