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नृसिंह द्वादशी 3 मार्च को: भगवान नृसिंह की फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर पूजा करने की परंपरा, जानें क्यों है खास

होलिका दहन से तीन दिन पहले नृसिंह भगवान की पूजा की जाती है। नृसिंह द्वादशी 3 मार्च को मनाई जाएगी।

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Newz Funda, New Delhi भगवान नृसिंह की फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर पूजा करने की परंपरा है। भगवान नृसिंह की पूजा से कुंडली और हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं। दुश्मनों पर जीत मिलती है और बीमारियां दूर होती हैं।

भगवान नृसिंह भगवान विष्णु के अवतार हैं। इन्होंने भक्तप्रह्लाद को बचाने के लिए हिरण्यकश्यप को मारा था। होलिका दहन से तीन दिन पहले नृसिंह भगवान की पूजा की जाती है। नृसिंह द्वादशी 3 मार्च को मनाई जाएगी।

भगवान विष्णु के दस अवतारों में एक

भगवान नृसिंह भगवान विष्णु के अवतार है। भगवान विष्णु के दस मुख्य अवतारों में से एक नृसिंह रूप है। भगवान विष्णु का रोद्र रूप है। इस अवतार में श्रीहरि विष्णु जी ने आधा मनुष्य और आधा शेर का रूप धारण करके राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप को मारा था। इसके बाद  इन्होंने प्रह्लालाद को अपनी गोद में बैठाकर दुलार किया। 

धर्म की रक्षा के लिए

इस अवतार से भगवान ने बताया कि धर्म की रक्षा के लिए साहस से युद्ध करने के साथ ही प्रेम और दया का भाव भी जरूरी है और युद्ध दोनों ही जरूरी है। क्योंकि वो शक्ति किसी काम की नहीं जिसके साथ प्रेम और दया का भाव न हो।

नृसिंह द्वादशी का महत्व

पंडित नीरज शर्मा ने बताया कि फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को नृसिंह द्वादशी मनाई जाती है। इसका जिक्र विष्णु पुराण में आता है। भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य और आधा शेर के शरीर में नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप का वध किया था।

उसी दिन से इस पर्व की शुरुआत मानी जाती है। भगवान विष्णु के इस स्वरूप ने प्रहलाद को भी वरदान दिया कि, जो कोई इस दिन भगवान नृसिंह का स्मरण करते हुए, श्रद्धा से उनका व्रत और पूजन करेगा उसकी मनोकामनाएं पूरी होंगी। इसके साथ ही उसके रोग, शोक और दोष भी खत्म हो जाएंगे।

ऐसे करें भगवान की नृसिंह की पूजा

भगवान नृसिंह भगवान विष्णु के अवतार है। इनकी पूजा करने का भी विशेष महत्व है। भगवान नृसिंह की पूजा के लिए भी सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और पीले वस्त्रे पहनें। पीले चंदन या केसर का तिलक लगाएं।

शुद्ध जल के बाद दूध में हल्दी या केसर मिलाकर अभिषेक करें। इसके बाद भगवान को पीला चंदन लगाएं। फिर केसर, अक्षत, पीले फूल, अबीर, गुलाल और पीला वस्त्र भेंट करें। इसके बाद पंचमेवा और फलों का नैवेद्य लगाकर नारियल चढ़ाएं और धूप, दीप का दर्शन करवाकर आरती करें।